देश के पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम आइएनएक्स मीडिया मामले में भ्रष्टाचार के आरोप में सुर्खियों में हैं। फिलहाल अतीत के घोटाले का एक जिन्न भी उनके सामने आकर खड़ा हो गया है। क्या 2004 में एक विदेशी कंपनी को जिताकर चिदंबरम ने भारत को हरवाया था?
पहले एक कहानी सुनाते हैं आपको।
साल 2004 में एक कंपनी भारत पर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत के जरिए 6 बिलियन डॉलर का दावा ठोकती है। भारत सरकार का वकील भी भारतीय और विदेशी कंपनी का वकील भी भारतीय होता है। भारत सरकार का वकील अपने सच्चाई भरे तर्कों के बल पर देश से हर्जाना मांग रही कंपनी को बैकफुट पर ढकेल देता है। वक्त के साथ देश में सरकार बदल जाती है और जो वकील, विदेशी कंपनी की पैरवी कर रहा था वो बन जाता है, भारत का वित्त मंत्री। अब वित्त मंत्री अपने देश के खिलाफ केस तो लड़ नहीं सकता तो आरोप लगा कि वो उस कंपनी को कथित तौर पर अपनी सेवाएं देता रहा। फिर जो भारतीय वकील भारत से हर्जाना मांगने वाली विदेशी कंपनी को बैकफुट पर लाया था, उसे नजरअंदाज कर एक पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश वकील को मोटे फीस पर भारत सरकार की ओर से वकील नियुक्त करता है। परिणाम वही हुआ जो होना था। भारत केस हारा, विदेशी कंपनी को हर्जाना देना पड़ा साथ ही उस पाकिस्तानी मूल के वकील को भी अच्छी-खासी फीस दी गई।
जानते हैं इस पूरी कहानी के केंद्र में कौन हैं और वो पात्र कौन-कौन हैं? वो विदेशी कंपनी थी एनरॉन, भारत सरकार के वकील थे हरीश साल्वे, बाद में भारत सरकार की ओर से पाकिस्तानी मूल के वकील थे खवर कुरैशी और उस विदेशी कंपनी के पहले भारतीय वकील और सरकार बदलने के बाद बने वित्त मंत्री थे पी. चिदंबरम। ये केस भी कुछ ऐसा ही है, जैसे जलेबी।
अब समझिए पूरा मामला।
1990 के दशक में महाराष्ट्र में बहुराष्ट्रीय कंपनी एनरॉन के बिजली संयत्र स्थापित करने की योजना में भी बड़े पैमाने पर घूस के लेन-देन का पर्दाफाश हुआ था। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों के साथ कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं के नाम भी शामिल थे। कई तरह के विवादों के कारण जब सरकार ने इस कंपनी के साथ करार खत्म किया, तो एनरॉन हर्जाने के रूप में बड़ी रकम भी वसूलने में कामयाब रहा। उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी।
महाराष्ट्र के डाभोल में पावर प्लांट लगाने का ठेका एनरॉन कंपनी को दिया गया था, लेकिन बिजली की कीमत और कुछ समस्याओं के साथ पूर्ववर्ती सरकारों में हुए भ्रष्टाचार के चलते ये परियोजना खटाई में पड़ गई। नतीजतन, एनरॉन कंपनी ने भारत की सरकार पर 6 बिलियन डॉलर का दावा ठोका था। मामला आखिर में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत तक पहुंचा था। एनरॉन कंपनी की पैरवी कर रहे थे कांग्रेस के दिग्गज नेता पी. चिदम्बरम।
चिदंबरम एनरॉन को भारत से मुआवजा दिलाना चाहते थे। तत्कालीन अटल सरकार ने भारत का पक्ष रखने के लिए हरीश साल्वे को भारत का वकील नियुक्त किया। हरीश साल्वे ने अंतर्राष्ट्रीय अदालत में भारत के पक्ष में दी गई अपनी दलीलों से एनरॉन कंपनी को बैकफुट पर ढकेल दिया था। एनरॉन पर संकट, वादाखिलाफी और बिजली दर जिरह के प्रमुख बिंदु थे। 2004 में अटल सरकार चली गई और सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली यूपीए की मनमोहन सिहं सरकार सत्ता में आई।
2004 में यूपीए सरकार ने हरीश साल्वे के साथ साथ पूरी लीगल टीम बदलकर, उनकी जगह पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिक वकील खावर कुरैशी को यह केस सौंप दिया। उस समय पी. चिदंबरम केंद्र सरकार में वित्त मंत्री बन चुके थे। आरोप लगा कि एनरॉन कंपनी लगातार पी. चिदंबरम की सेवाएं लेती रही।
इस मामले में भारत की दोतरफा हार हुई। एनरॉन से भी केस में हार का सामना करना पड़ा और कुरैशी को मुकदमे की फीस के तौर पर बड़ी रकम देनी पड़ी। खुद हरीश साल्वे ने एक इंटरव्यू में बताया था कि सरकार बदलने के बाद भी वह ट्रिब्यूनल में भारत के वकील बने रहने को तैयार थे लेकिन, मीडिया रिपोर्ट्स के जरिए उन्हें पता चला कि इस काम के लिए कुरैशी को हायर कर लिया गया है और साल्वे को कुरैशी के अधीन रहना होगा। यह जानकारी भी हरीश साल्वे को सरकार की ओर से नहीं दी गई थी। इसलिए हरीश साल्वे ने भारत को शुभकामनाएं देने के साथ केस से हटने का फैसला लिया था। बहरहाल बाद में एनरॉन कंपनी के दिवालिएपन और बर्बादी की सच्चाई भी सबके सामने आई।
बीजेपी ने कांग्रेस के इस कदम पर सवाल भी उठाया था कि क्या किसी भारतीय वकील से ज्यादा इस मामले में पाकिस्तानी मूल के वकील पर भरोसा किया जा सकता था। इस पर कांग्रेस ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया था।
मजे कि बात ये देखिए कि इस केस के 15 साल बाद खवर कुरैशी कुलभूषण जाधव केस में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में पाकिस्तान के वकील हैं और हरीश साल्वे भारत की ओर से पैरवी कर रहे हैं। कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक को लेकर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में चले मुकदमे में भारत के सीनियर अधिवक्ता हरीश साल्वे और पाक के खवर कुरैशी के बीच सीधा मुकाबला दिखाई दिया था और इस मामले में अदालत ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा पर कोई फैसला आने तक रोक लगाने का आदेश दिया था। इस सुनवाई में भारत के हीरो रहे हरीश साल्वे ने पाकिस्तानी वकील खावर कुरैशी को अपने तर्कों के आगे बेदम कर दिया था। आईसीजे में कुरैशी के सामने केस लड़ने के लिए साल्वे ने भारत सरकार से महज 1 रुपये की टोकन फीस ली।
इन सभी तथ्यों पर गौर करें तो सवाल उठता है कि क्या एनरॉन केस में पी. चिदंबरम ने जान-बूझकर भारत को हरवाया था और क्या कंपनी को मिले हर्जाने में भी बंदरबांट हुई थी ?